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महाभारत तो हम सब जानतेहि है ,लेकिन कौरवोंके जनम के बारे में थोडासा डिटेल में जाके पढ़ेंगे।
कौरवोंका जनम कैसे हुआ और वो १०० नहीं बल्कि १०२ थे
एक माँ भला १०२ बच्चोंको कैसे जनम दे सकती है ?
एक स्त्री होने के नाते गांधारी ने कौनसे अत्यचारोंका सामना किया जानते है आज के इस ब्लॉग में।
माता गांधारी एवम धृतराष्ट्र की एक सो एक संताने थी जिन्हें महाभारत काल में कौरव कहा जाता था | जाने इसके पीछे का पूरा रहस्य |

गांधारी जो कि गंधार नरेश की पुत्री थी और एक शिव भक्त | गांधारी ने अपने बाल्यकाल से ही शिव भक्ति में अपने मन को लगा लिया था जिसके फलस्वरूप भगवान् शिव ने उन्हें सो पुत्रों का वरदान दिया |गांधारी का विवाह विचित्रवीर्य के पुत्र धृतराष्ट्र से किया गया जो कि जन्म से ही नेत्रहीन थे | धृतराष्ट्र की इच्छा थी कि उनकी पत्नी नेत्रों वाली हो ताकि वो उनकी नेत्रों से दुनियाँ को देख सके, राज्य संभाल सके | लेकिन जैसे ही गांधारी को विवाह प्रस्ताव मिला | उसने अपने पतिधर्म को सर्वोपरि रख विवाह के पूर्व ही अपनी आँखों पर जीवन भर के लिए पत्ती बांधने की प्रतिज्ञा ले ली जिससे धृतराष्ट्र बहुत क्रोधित हो उठे क्यूंकि इस कारण धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का राजा नहीं बनाया गया और पांडू का राज तिलक किया गया |
अपने क्रोध के कारण धृतराष्ट्र ने गांधारी को अपने समीप नहीं आने देने का फैसला किया | यह जानने के बाद शकुनी जो कि गांधारी का भाई था उसने धृतराष्ट्र को शिव जी के वरदान के बारे में बताया और कहा आपका पुत्र ही आपके स्वप्नों को पूरा करेगा और अपने 99 भाईयों के होते वो कभी परास्त नहीं हो सकेगा | यह सुन महत्वाकांक्षी धृतराष्ट्र को अपनी इच्छा पूरी करने का एक रास्ता नजर आया | अतः धृतराष्ट्र ने गांधारी को पत्नी के रूप में स्वीकार किया |
जिसके बाद गांधारी को गर्भधारण किये 10 महीने से अधिक हो गया लेकिन उसे प्रसव नहीं हुआ | 15 महीने बाद गांधारी को प्रसव में एक मॉस का बड़ा टुकड़ा हुआ | जिसके कारण सत्यवती एवम धृतराष्ट्र ने उन्हें बहुत कौसा | नाराज धृतराष्ट्र ने अपनी पत्नी को अधिक कष्ट देने के उद्देश्य से गांधारी की प्रिय दासी के साथ संबंध बनाये |
उसी वक्त महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर पहुँचे और उन्होंने बताया कि किसी स्त्री के गर्भ से सो पुत्रो का जन्म होना न मुमकिन हैं लेकिन शिव का वरदान व्यर्थ नहीं होता अतः यह मांस का टुकड़ा नहीं बल्कि इसमें गांधारी के एक सो एक संतानों के बीज हैं | गांधारी ने वरदान में भगवान से एक पुत्री की भी कामना की थी इस प्रकार उन्हें एक सो एक संतानों का सौभाग्य प्राप्त हैं |
इसके बाद महर्षि वेद व्यास ने एक सो एक मटकों में गर्भ की तरह वातावरण निर्मित किया | इसके बाद सबसे पहले जिस पुत्र का जन्म हुआ उसका नाम दुर्योधन रखा गया | इसके बाद दासी को भी पुत्र की प्राप्ति हुई | अतः कौरवो की संख्या सो नहीं एक सो दो थी जिनमे बहन दुशाला सहित सो संताने गांधारी की एवम एक संतान उनकी दासी की थी |
यह था कौरवो के जन्म से जुड़ा सच | महाभारत का युद्ध धर्म की रक्षा के लिए लड़ा गया था जिसमे कौरव अधर्मी एवम पांडव धर्मी थे | इस महाभारत के रचियता महर्षि वेदव्यास थे उनके बोलने पर महाभारत को स्वयं गणपति जी ने लिखा था एवम इस महाभारत के सूत्रधार स्वयं श्री कृष्ण थे जिन्होंने धर्म की इस लड़ाई में पांडवों का मार्गदर्शन किया था |