अधिक्तांश देशो में महिला और पुरुष की पॉपुलेशन 50% है जिसका मतलब होता है की देश की बेरोजगारी – और निम्न जीडीपी( ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट),निम्न आर्थिक विकास !
जिस देश में महिलाये आर्थिक रूप से सशक्त होती है उसे देश की इकॉनमी भी अच्छी होती है !
महिलाओं के एम्पॉवरमेंट के बिना असमानताओं को दूर नहीं किया जा सकता है।
यदि महिलाएं सशक्त नहीं हैं तो वे सुरक्षित महसूस नहीं कर सकती हैं और जीवन में अपनी सुरक्षा का आनंद नहीं ले सकती हैं।
अगर महिलाओं को सशक्त नहीं किया जाता है तो महिला आबादी में बेरोजगारी बढ़ने का मौका होगा जिससे अंततः देश की आर्थिक वृद्धि कम होगी।

यदि महिलाएं सशक्त नहीं हैं, तो वे अपने बच्चे को ठीक से शिक्षित या सशक्त नहीं बना सकती हैं, क्योंकि अधिकांश समय माँ बच्चों को विकसित करती हैं, इसलिए अगली पीढ़ी की दुनिया को विकसित करने के लिए बच्चों को बचपन से ही सशक्त बनाने के लिए अनिवार्य है कि अगर माताओं को सशक्त नहीं किया जाए तब वे उन बच्चों को सशक्त नहीं बना सकते जो दुनिया की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक प्रभावित कर सकते हैं।
महिला एम्पॉवरमेंट के लाभ:
महिलाएं स्वतंत्रता, आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास के साथ अपने जीवन का नेतृत्व करने में सक्षम होती है ।
महिलाएं अपनी अलग पहचान बना सकती हैं।
एम्पॉवरमेंट सम्मान दिलाता है, महिलाएं समाज में अच्छा सम्मान हासिल कर सकती है ।
चूंकि महिलाएं आर्थिक रूप से अधिक मजबूत और स्वतंत्र हैं, इसलिए वे अपने और अपने परिवार के सदस्य की जरूरतों और इच्छा को पूरा करने में सक्षम होति है, जो दुनिया के आर्थिक विकास को प्रभावित करता है ।
वर्किंग वुमन ४ और नए एम्प्लॉयमेंट तैयार करती है – कैसे ?
जब एक महिला जॉब करती है तो घर में कम वक़्त दे पाती है ,
जिससे वो खाना पकाना, बच्चोंको पढाना ,घर के अन्य काम, और बच्चोंको संभालना ऐसी कई कामोंके लिए और महिलाओंको नियुक्त करती है जिससे 4 लोगोंको और रोजगार मिलता है !
महिला जब जॉब करती है उसे आर्थिक और मानसिक सशक्तिकरण मिलता है.

मेरा ये पोस्ट उन् तमाम महिलाओंके विरोध में नहीं है जो अपना घर संभालती है , बल्कि जो महिलाये जॉब करके अपना घर संभालती है उनको सहरने के लिए है क्युकी अक्सर अपने समाज में ये पाया गया है की वो जॉब करती है मतलब वो घर के कई जवाबदारियोंसे मुक्त है इसलिए उसे ताने भी दिए जाते है जब के अक्सर सोशल मीडिया पर वर्किंग वुमन पर कई जोक्स भी फॉरवर्ड होते है जिसमे ये बोलै जाता है की वर्किंग वुमन एक एडुकेटेड होने के बावजूद भी उसके बच्चोंको कोई और पढ़ाता है , तो क्या हुआ उसने ट्यूशन ही लगा ली , उससे उसकी सोच तो नहीं बदली वो उसकी सोच से बच्चोंको अछसे से पाल पोस सकती है !
रोज़गार से जुड़ी बात करें तो आज भी महिलाएं श्रम बल क्षेत्रों में ज्यादा संख्या में हैं. उनकी भागीदारी बड़े शहरों में सफेद कॉलर वाली नौकरियों की तुलना में काफी अधिक है.
ऐसा भी देखा गया है कि जैसे-जैसे घर अमीर हो जाते हैं, वे महिलाओं को घर के बाहर काम न करने देना पसंद करते हैं. समाज की रूढ़िवादी सोच की वजह से एक लड़की को नौकरी करने के लिए पहले अपने परिवार को मनाना पड़ता है. यहाँ तो जैसे तैसे वो अपने परिवार को मनाकर नौकरी करने लगती हैं.
लेकिन शादी के बाद आम तौर पर वह ससुराल वालों और खुद को सामाजिक अलगाव से बचाने के लिए अकसर अपने कदम पीछे कर लेती हैं.
जो उसे , उसके घर और देश को पीछे ले जाता है
चलिए अपनी सोच बदलिए और आगे बढिये , और देश को भी आगे बढ़ाये !